चलचित्र – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

चलचित्र – Ujjain Poojan आचार्य निर्मल जी शास्त्री

 

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श्री नवग्रह मंदिर (शनि मंदिर) – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

 श्री नवग्रह मंदिर (शनि मंदिर) 

उज्जैन शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर इंदौर-उज्जैन मार्ग पर त्रिवेणी संगम तीर्थ स्थित है। यहां पर नवग्रहों का अत्यंत प्राचीन मंदिर है। स्कंद पुराण में इसे शनिदेव के महत्वपूर्ण स्थान के रूप में मान्यता दी गई है। प्रति शनैश्चरी अमावस्या को यहां पर असंख्‍य श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं।

श्री चिंतामण गणेश मंदिर – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

श्री चिंतामण गणेश मंदिर

यह एक प्राचीन मंदिर है। इस परमारकालीन मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। यहां पर श्री चिंतामणि गणेश के साथ ही इच्छापूर्ण और चिंताहरण गणेशजी की प्रतिमाएं हैं।

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में ली गई मनौतियां अवश्य ही पूर्ण होती हैं। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर नगर से लगभग 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

श्री गढ़कालिका देवी मंदिर – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

श्री गढ़कालिका देवी मंदिर

गढ़कालिका देवी को महाकवि कालिदास की आराध्य देवी माना जाता है। उनकी अनुकंपा से ही अल्पज्ञ का‍लिदास को विद्वता प्राप्त हुई थी। तांत्रिक दृष्टिकोण से यह एक सिद्धपीठ है। त्रिपुरा माहात्म्य के अनुसार देश के 12 प्रमुख शक्तिपीठों में यह 6ठा स्थान इस मंदिर का ही है।

यह मंदिर जिस स्थान पर स्थित है, वहां कभी प्राचीन अवन्तिका नगरी बसी हुई थी। गढ़ पर स्थित होने से ये गढ़कालिका कहलाईं।

उक्त मंदिर में कालिकाजी के एक तरफ श्री महालक्ष्मीजी हैं और दूसरी तरफ श्री महासरस्वतीजी की प्रतिमा स्थित है। यहां से कुछ दूरी पर ही शिप्रा नदी है, वहीं पर सतियों का स्थान भी है। उसके सामने ओखर श्मशान घाट है। पौराणिक दृष्टिकोण से गढ़कालिका मंदिर का विशेष महत्व है। यहां पर श्री दुर्गाशप्तशती का पाठ करने से आध्यात्मिक प्रगति होती है। यहां न‍वरात्रि पर्व पर विशेष आयोजन होते हैं।

 नगरकोट की रानी – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

 नगरकोट की रानी

नगरकोट की रानी प्राचीन उज्जयिनी के दक्षिण-पश्चिम कोने की सुरक्षा देवी है। यह स्थान पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि की अनेक कथाएं इस स्‍थान से संबद्ध हैं। यह स्थान नाथ संप्रदाय की परंपरा से जुड़ा है। मंदिर के सामने एक कुंड है, जो परमारकालीन है। कुंड के दोनों ओर दो छोटे मंदिर हैं। एक मंदिर में गुप्तकालीन कार्तिकेय की प्रतिमा है। यह स्थान नगर के प्राचीन कच्चे परकोटे पर स्थित है इसलिए इसे नगरकोट की रानी कहा कहा जाता है।

श्री सांदीपनि आश्रम – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

श्री सांदीपनि आश्रम

अंकपात क्षेत्र में स्थित इस आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा और बलरामजी ने अपने गुरु श्री सांदीपनि ऋषि के सान्निध्य में रहकर गुरुकुल परंपरानुसार विद्याध्ययन कर 14 विद्याएं तथा 64 कलाएं सीखी थीं। उस काल में तक्षशिला और नालंदा की तरह उज्जैन (अवन्तिका) भी ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति का सुप्रसिद्ध केंद्र था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण यहां स्लेट पर लिखे अंक धोकर मिटाते थे इसलिए ही इस क्षेत्र का नाम अंकपात पड़ा। श्रीमद्भागवत, महाभारत तथा कई अन्य पुराणों में यहां का वर्णन है। यहां पर स्‍थित कुंड में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरुजी को स्नानार्थ गोमती नदी का जल उपलब्ध करवाया था अतएव यह सरोवर गोमती कुंड कहलाया। यहां पर स्थित मंदिर में श्रीकृष्ण, बलराम तथा सुदामाजी की सुंदर म‍ूर्तियां हैं। महर्षि सांदीपनि के वंशज अभी भी उज्जैन में निवास करते हैं तथा प्रख्यात ज्योतिर्विद के रूप में जाने जाते हैं। इसी अंकपात क्षेत्र में सिंहस्थ महाकुंभ का मेला लगता है तथा यह ऐतिहासिक एवं पुरा‍तात्विक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण स्‍थान है।

श्री भर्तृहरि गुफा – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

श्री भर्तृहरि गुफा

गढ़कालिका के दक्षिण में भर्तृहरि गुफा स्‍थित है। सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भर्तृहरि की साधना-स्थली होने के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। राज-पाट त्यागने के पश्चात उन्होंने नाथ पंथ की दीक्षा लेकर कई वर्षों तक यहां पर घनघोर योग-साधना की थी।

शिप्रा तट पर स्थित यह गुफा, बौद्ध एवं परमारकालीन स्थापत्य कला की संरचना है। इसका प्रवेश मार्ग तुलनात्मक रूप से संकरा है तथा भीतरी दक्षिणी भाग में गोपीचंदजी की प्रतिमा है। राजयोगी भर्तृहरि की धूनी के ऊपर की शिला पर हाथ के पंजे के निशान हैं। कहा जाता है कि भर्तृहरि की तपस्या से इंद्र डर गया था और उनकी तपस्या को भंग करने के लिए उसने एक शिला फेंकी जिसे भर्तृहरि ने अपना हाथ ऊपर करके वहीं रोक दिया था। अत: भर्तृहरि के हाथ का निशान इस शिला पर अंकित हो गया। किंवदंती है कि पहले इस गुफा के अंदर से ही चारों धामों तक जाने के रास्ते थे, जो आजकल बंद हैं। इस गुफा की व्यवस्था नाथपंथी साधुगण करते हैं। यहां से कुछ दूर पर नागपंथ के प्रमुख आचार्य मत्स्येन्द्रनाथजी की समाधि है। उनको पीर मछंदरनाथ भी कहते हैं।

वेधशाला – जंतर मंतर – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

वेधशाला

ज्योतिष शास्त्र के दृष्णिकोण से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस वेधशाला का निर्माण सन् 1730 में राजा जयसिंह ने करवाया था। सन् 1923 में महाराजा माधवराव सिंधिया ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। सम्राट यंत्र, रिगंश यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र तथा भित्ति यंत्र आदि यहां के प्रमुख यंत्र हैं। खगोल अध्ययन के लिए यह स्थान अत्यंत उपयोगी है।