चलचित्र – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

चलचित्र – Ujjain Poojan आचार्य निर्मल जी शास्त्री

 

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श्री भर्तृहरि गुफा – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

श्री भर्तृहरि गुफा

गढ़कालिका के दक्षिण में भर्तृहरि गुफा स्‍थित है। सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भर्तृहरि की साधना-स्थली होने के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। राज-पाट त्यागने के पश्चात उन्होंने नाथ पंथ की दीक्षा लेकर कई वर्षों तक यहां पर घनघोर योग-साधना की थी।

शिप्रा तट पर स्थित यह गुफा, बौद्ध एवं परमारकालीन स्थापत्य कला की संरचना है। इसका प्रवेश मार्ग तुलनात्मक रूप से संकरा है तथा भीतरी दक्षिणी भाग में गोपीचंदजी की प्रतिमा है। राजयोगी भर्तृहरि की धूनी के ऊपर की शिला पर हाथ के पंजे के निशान हैं। कहा जाता है कि भर्तृहरि की तपस्या से इंद्र डर गया था और उनकी तपस्या को भंग करने के लिए उसने एक शिला फेंकी जिसे भर्तृहरि ने अपना हाथ ऊपर करके वहीं रोक दिया था। अत: भर्तृहरि के हाथ का निशान इस शिला पर अंकित हो गया। किंवदंती है कि पहले इस गुफा के अंदर से ही चारों धामों तक जाने के रास्ते थे, जो आजकल बंद हैं। इस गुफा की व्यवस्था नाथपंथी साधुगण करते हैं। यहां से कुछ दूर पर नागपंथ के प्रमुख आचार्य मत्स्येन्द्रनाथजी की समाधि है। उनको पीर मछंदरनाथ भी कहते हैं।

कालियादेह महल – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

कालियादेह महल

प्राचीनकाल में कालियादेह महल जो आज सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है, भैरवगढ़ से 3‍ किमी की दूरी पर शिप्रा नदी के पास स्थित है। मुगल शासक मुहम्मद खिलजी ने 1458 में इस महल का निर्माण करवाया था। मांडू के सुल्तान ने यहां 52 कुंडों का निर्माण करवाया।

> महल के पीछे से बहती शिप्रा नदी की धारा दो भागों में बंटकर उसका जल प्रवाह इन कुंडों में किया गया। आज भी वर्षा ऋतु में कल-कल की ध्वनि से इन कुंडों से व कुंडों की घुमावदार नालियों से बहता पानी पर्यटकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता है।

हरसिद्धि मंदिर – उज्जैन – Ujjain Poojan पण्डित निर्मल जी शास्त्री

श्री हरसिद्धिदेवी का मंदिर

उज्जैन के प्राचीन और ‍पवित्र उपासना स्थलों में श्री हरसिद्धिदेवी देवी के मंदिर का विशेष स्थान है। स्कंद पुराण में वर्णन है कि शिवजी के कहने पर मां भगवती ने दुष्ट दानवों का वध किया था अत: तब से ही उनका नाम हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध हुआ। शिवपुराण के अनुसार सती की कोहनी यहीं पर गिरी थी अतएव तांत्रिक ग्रंथों में इसे सिद्ध शक्तिपीठ की संज्ञा दी गई है। यह देवी, सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य कुलदेवी भी कही जाती है।

कहते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य ने यहां पर घोर तपस्या की थी तथा लगातार 11 बार अपना सिर काटकर इन्हें समर्पित किया था और ग्यारह बार सिर पुन: उनके शरीर से जुड़ गया था। उपरोक्त तथ्‍यों के कारण इस मंदिर का अपना विशिष्ट महत्व है।

इस मंदिर के गर्भगृह में श्रीयंत्र प्रतिष्ठित है। ऊपर श्री अन्नपूर्णा तथा उनके आसन के नीचे कालिका, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती आदि देवियों की प्रतिमाएं हैं। रुद्रसागर तालाब के निकट इस मंदिर के परकोटे में चारों ओर द्वार हैं। इस मंदिर के प्रांगण में दो विशाल दीप स्तंभ हैं जिन पर नवरात्रि में दीपक जलाए जाते हैं। इसके कोने पर एक अतिप्राचीन बावड़ी भी है। इस मंदिर के पीछे संतोषी माता एवं अगस्त्येश्वर महादेव का मंदिर है। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि इस मंदिर के दर्शन से अपार पुण्य प्राप्त होता है।

हरसिद्धि मंदिर

प्राचीन काल में चण्ड, प्रचण्ड नामक दो राक्षस थे , जिन्होंने अपने बल – पराक्रम से सारे संसार को कंपा दिया था। एक बार ये दोनों कैलास पर गए . जब ये दोनों अंदर जाने लगे तो द्वार पर नंदीगण ने इन्हे रोका, जिससे क्रोधित होकर इन्होने नंदीगण को घायल कर डाला। जब भगवान् शंकर को यह बात मालुम हुई तो उन्होंने चण्डी का समरण किया . देवी ने तुरंत प्रकट होकर शिवजी की आज्ञा के अनुसार उन राक्षस का वध कर दिया। शिवजी ने देवी की विजय पर प्रसन्न होकर कहा कि अब से संसार में तुम्हारा नाम ‘हरसिद्धि’ प्रसिद्ध होगा और लोग इसी नाम से तुम्हारी पूजा करेंगे। तब से माता हरसिद्धि उज्जैन के महाकालवन में ही विराजती है

कहते है सम्राट विक्रमादित्य कि आराध्या देवी यह श्री हरसिद्धि ही थी। वह इन्ही की कृपा से निर्विघ्न शासनकार्य चलाया करते थे। महाराज माताजी के इतने बड़े भक्त थे कि वह हर बारहवे साल सवयं अपने हाथो अपना सिर उनके चरणो पर चढ़ाया करते थे और माता की कृपा से उनका सिर फिर पैदा हो जाता था। इस तरह राजा ने ग्यारह बार पूजा की और बार -२ जीवित हो गए। बारहवी बार जब उन्हों ने पूजा कि तो सिर वापस नहीं हुआ और इस तरह उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर के एक कोने में ग्यारह सिन्दूर लगे हुए रुण्ड रखे हुए है। लोगो का कहना है कि ये विक्रम के कटे हुए मुण्ड है। किन्तु इस विषय में कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं पाया जाता। अब कहिये जय माता दी जी

तू ही

दोहा – चिंता बिघ्नबिनासिनी कमलासनी सक्त बीसहथी हँसबाहिनी माता देहु सुमत्त भुजंगप्रयात नमो आद अनाद तुंही भवानी।

तुंही योगमाया तुंही बाकबानी तुंही धरन आकास बिभो पसारे। तुंही मोहमाया बिसे सूल धारे तुंही चार बेद खंट भाप चिन्ही।

तुंही ज्ञान बिज्ञान में सर्ब भिन्हि तुंही बेद बिद्या चहुदे प्रकासी। कलामंड चौबीसकी रुपरासी तुंही बिसवकर्ता तुंही बिसवहर्ता।

तुंही स्थावर जंगममें प्रवरता दुर्गा देबि बन्दे सदा देव रायं। जपे आप जालंधरी तो सहाये

दोहा –

करै बिनती बंदिजन सन्मुख रहेसुजान प्रगट अंबिका मुख कहै मांग चंद बरदान

हरसिद्धि मंदिर उज्जैन के मंदिरों के शहर में एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है जो गहरे सिंदूरी रंग में रंगी है। देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति देवी महालक्ष्मी और देवी सरस्वती की मूर्तियों के बीच विराजमान है। श्रीयंत्र शक्ति की शक्ति का प्रतीक है और श्रीयंत्र भी इस मंदिर में प्रतिष्ठित है। इस जगह का पुराणों में बहुत महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर को ले जा रहे थे, तब उसकी कोहनी इस जगह पर गिरी थी। इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठों के शासनकाल में किया गया था, अतः मराठी कला की विशेषता दीपकों से सजे हुए दो खंभों पर दिखाई देती है। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुँआ है तथा मंदिर के शीर्ष पर एक सुंदर कलात्मक स्तंभ है। इस